वर्जिन भानुप्रिया रिव्यू : उर्वशी रौतेला अगर इसी तरह कुछ डिफरेंट फिल्म करेंगी तो बन सकती है लेडी आयुष्मान खुराना

By Anant

ENTERTAINMENT  | 12:00:00 AM

MUMBAI:

सात साल पहले सनी देओल की हीरोइन के तौर पर फिल्म सिंह साहब द ग्रेट से हिंदी सिनेमा में डेब्यू करने वालीं उर्वशी रौतेला ने आखिरकार अपना वो स्लॉट पा लिया है, जिसके लिए अपनी पिछली फिल्म हेट स्टोरी 4 में वह बहुत कोशिश करती नजर आई थीं।

उनकी नई फिल्म वर्जिन भानुप्रिया हिंदी सिनेमा में उनको लेडी आयुष्मान खुराना का टाइटल दिला सकती है बशर्ते वह आगे भी ऐसी ही लीक तोड़ने वाली फिल्में करने का साहस दिखा सकें। आयुष्मान खुराना आज की तारीख में हिंदी सिनेमा के अव्वल नंबर सितारे सिर्फ इसलिए हैं क्योंकि उन्होंने वीर्य दान, लिंग स्तभन की दिक्कत, समलैंगिक प्रेमी, बॉडी शेमिंग और गंजेपन जैसे दुरुह विषयों पर हिंदी फिल्मों में काम किया।

उर्वशी रौतेला ने इसकी शुरूआत आधी आबादी की प्रतिनिधि बनकर वर्जिन भानुप्रिया में की है। फिल्म का विषय बहुत ही सामयिक है और उर्वशी रौतेला की इस बात के लिए दाद दी जानी चाहिए कि उन्होंने विषय को लीक से भटकर ग्रेट ग्रांड मस्ती वाले मोड में नहीं जाने दिया। कहानी में उनके किरदार की चुप्पी और उनके चेहरों के भावों ने अपना काम बहुत उम्दा तरीके से किया है।

फिल्म वर्जिन भानुप्रिया की कहानी आयुष्मान खुराना टाइप की फिल्मों में दादा कोंडके के सिनेमा का कॉकटेल है। फिल्म सिर्फ वयस्कों के लिए है, ये बात ओटीटी ने खुद फिल्म के साथ बता रखी है तो ज्यादा उत्साह में आकर इसे घर के स्मार्ट टीवी पर बच्चों के सामने न चलाएं। फिल्म की कहानी इतनी सी है कि एक मिडिल क्लास लड़की के किसी लड़के के साथ शारीरिक संबंध बनाने में आने वाली दिक्कतों में एक टैरो कार्ड रीडर का वक्तव्य एक तो करेला ऊपर से नीमचढ़ा का काम कर जाता है। फिल्म का मूल विचार बहुत उम्दा है और इसके कलाकारों ने स्क्रिप्ट के हिसाब से अपना काम भी बढ़िया किया है, लेकिन ऐसे विचार पर एक अच्छी पटकथा की जरूरत फिल्म देखते समय महसूस होती है।

भानुप्रिया के तौर पर उर्वशी रौतेला ने इस बार खुद को काफी संयमित और संतुलित रखते हुए कैमरे के सामने अदाकारी की है। यहां तक कि फोन पर दादा कोंडके टाइप के द्विअर्थी संवादों पर उनकी जो प्रतिक्रिया होती है, वही उनकी जीत है।

भानुप्रिया और उसके डफर पिता विजय के बीच के संवाद उस स्थिति की भी झलक है, जिसमें पुरानी पीढ़ी का कोई पिता जब आज की पीढ़ी के हिसाब से खुद को बदलने की कोशिश करता है तो कैसा हास्य उत्पन्न होता। पिता का बेटी से सैनेटरी पैड को लेकर चलने वाला लंबा हास्य ब्लैक कॉमेडी का ऐसा नमूना है, जिसका आने वाले समय में खूब जिक्र होने वाला है। राजीव गुप्ता और अर्चना पूरण सिंह के बीच न बनने वाली केमिस्ट्री भी एक अलग केमिस्ट्री है। रुमाना मोला का किरदार थोड़ा ओवरबोर्ड चला जाता है कहानी में, इसमें किसी बेहतर अदाकारा को लेकर फिल्म को बेहतरीन बनाया जा सकता था। गीत संगीत और तकनीकी पक्ष के हिसाब से भी फिल्म ठीक ही है।

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