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INTERNATIONAL | 12:00:00 AM
NEW DELHI:
नई दिल्ली: चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद के बीच भारत ने अब कड़ा रुख अपना लिया है। भारत ने शी जिनपिंग के नेतृत्व वाली चीनी सरकार के खिलाफ अब सैन्य और आर्थिक मोर्चे के बाद कूटनीतिक घेराबंदी भी शुरू कर दी है। इसकी शुरुआत भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हांगकांग का मुद्दा उठाकर की है।
भारत ने बुधवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में हांगकांग में चीन द्वारा लागू किए गए विवादित राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के खिलाफ पहली बार बयान दिया। हांगकांग में कई महीनों से लगातार हो रहे विरोध-प्रदर्शन पर भारत ने पहली बार अपनी प्रतिक्रिया दी और मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंच पर उठाया।
भारत ने अपने बयान में कहा है कि सभी संबंधित पक्षों को इस मुद्दे को उचित, गंभीर और वस्तुगत तरीके से सुलझाना चाहिए। भारत के इस बयान को चीन के खिलाफ कूटनीतिक दबाव बढ़ाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि राजीव कुमार चंदर ने जेनेवा में आयोजित हुए मानवाधिकार परिषद के 44वें सत्र में दिए अपने बयान में कहा, 'हांगकांग में भारतीय समुदाय की एक बड़ी आबादी बसती है जिसे देखते हुए भारत हालिया घटनाक्रमों पर करीब से नजर बनाए हुए है। हमने इन घटनाक्रमों को लेकर चिंता जाहिर करने वाले कई बयानों के बारे में सुना है। हमें उम्मीद है कि संबंधित पक्ष इन चिंताओं को ध्यान में रखते हुए उचित तरीके से इस मुद्दे को सुलझाएंगे।
बता दें कि हांगकांग में चीन ने नए सुरक्षा कानून को लागू कर इसके जरिए हांगकांग की स्वायत्तता खत्म करने की कोशिश शुरू कर दी है, यही कारण है कि इस मुद्दे पर दुनियाभर में चीन की आलोचना हो रही है। दरअसल 1997 तक ब्रिटिश उपनिवेश रहा हांगकांग 'एक राष्ट्र, दो व्यवस्थाएं' (वन नेशन, टू सिस्टम) के तहत चीन को सौंप दिया गया था लेकिन अब चीन के इस नए कानून की वजह से हांगकांग की स्वायत्तता खतरे में आ गई है। इसे लेकर हांगकांग में खूब विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं। बुधवार को कानून लागू होने के बाद यहां नए कानून के तहत 300 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में 27 देशों ने चीन द्वारा हांगकांग में लाए गए नए सुरक्षा कानून पर दोबारा विचार करने के लिए कहा है। ऑस्ट्रेलिया-अमेरिका-जापान-भारत के गठजोड़ में भारत ही इकलौता ऐसा देश था जिसने अभी तक हांगकांग मुद्दे पर बयान नहीं दिया था। लेकिन अब इस मुद्दे पर भारत के दिए गए बयान को चीन के खिलाफ कूटनीतिक दबाव के रूप में देखा जा रहा है।